शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

रेल बजटः कुछ चिंता की लकीरें तो कुछ उम्मीद की सुनहरी किरणें

कुछ चिंता की लकीरें तो कुछ उम्मीद की सुनहरी किरणें। सुरेश प्रभु के दूसरे रेल बजट की यही तस्वीर है। प्रभु सुधारों के समर्थक माने जाते हैं। सफाई, बुजुर्गो की सुविधा और महिलाओं की सुरक्षा तक उन्होंने हर क्षेत्र में यात्रियों को कुछ न कुछ अछा अहसास देने की कोशिश की है, लेकिन उन्हें यह भी देखना होगा कि यात्रियों की संख्या क्यों घट रही है? किराये और माल भाड़े के रूप में रेलवे ने जितनी कमाई का आकलन किया था उसमें 8.5 से 10 फीसद की कमी रहना मामूली बात नहीं है। इसका अर्थ है कि हमारी रेल प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रही है।

आमदनी में गिरावट के दो कारण गिनाए जा सकते हैं। अर्थव्यवस्था में ठहराव और पिछली बार माल भाड़े में वृद्धि के कारण गुड्स ट्रैफिक का एक हिस्सा सड़क की राह चला गया। यात्री किराये में अनुमानित राजस्व लक्ष्य पूरा न होने के लिए कचे तेल की कीमतों में गिरावट को वजह बताया जा सकता है। यह माना जा रहा है कि विमान किराये में कमी से रेलयात्रियों ने हवाई जहाज की ओर रुख कर लिया है। यह सही हो सकता है, क्योंकि जैसी भीड़ कभी रेलवे प्लेटफार्माें में दिखती थी वैसा ही कुछ हवाई अड्डों में दिखने लगा है।

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