मोदी सरकार ने हटाए रेलवे से राजनीति के रेड सिग्नल, अब होगी राज्यनीति |
रेलवे से राजनीति के रेड सिग्नल मोदी सरकार ने हटा दिए हैं। रेलवे की कार्यशैली में अब राजनीति के बजाय राज्यनीति है। सुविधा और सहयोग की पटरियों पर अब केंद्र-राज्य सरकारें मिलकर चलेंगी। कभी बंगाल तो कभी बिहार या किसी एक राज्य की चाहतों में अटकता रहा सुरेश प्रभु का रेल बजट अब राजनीतिक आग्रहों और पूर्वाग्रहों से आजाद होकर ज्यादा राष्ट्रीय रंग-रूप के साथ निकला है।
बजट में घोषणाएं नहीं, बल्कि उनके अमल और रेलवे की पूरी कार्यशैली बदलने की दिशा स्पष्ट दिखती है। लंबे अरसे बाद ऐसा हुआ है कि रेल मंत्रालय मुख्य सत्ताधारी दल के पास आया है। गठबंधन सरकारों का युग आने के बाद पिछले कुछ समय से रेल मंत्रालय सहयोगी दलों के पास ही रहा। सहयोगी दल किसी राज्य या क्षेत्र विशेष से होते रहे। नतीजतन उनके बजट में उनके अपने सियासी हित ज्यादा रहे। राजनीतिक मजबूरियों के चलते रेलवे में सुधार की प्रक्रिया धीमी रही। घोषणाएं और रियायतों की मानसिकता हावी रही। अपने क्षेत्रों में सियासी हित साधने के लिए रेलवे के संसाधनों के दुरुपयोग से भी नेता नहीं चूके।
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